शीर्षक: कोशिश ना छोड़ना आसमान छूने की
कोशिश ना छोड़ना आसमान छूने की,
क्या पता जिस मोड़ पर हिम्मत हारो,
वहीं से शुरुवात होती हो मंजिल की,
और तुम्हारे एक नए जीवन की,
जो कटती तमाम उमर तुम्हारी बस,
एक खुश मिज़ाज़ी और आराम में,
कैसे तुम पता कर पाते कीमत,
दो पल के आराम और खुशी की,
इंसानी मिज़ाज़ है तुम्हारा ऐ दोस्त,
अक्सर खोकर ही एहसास होता हैं,
की मन मर्जी का वक्त पाने का,
अपना सुख ही एक अलग होता हैं,
जो रोकर बरबाद करोगे वक्त को,
तो अपने आंसूओ के धुंध लके में,
कहा देख पाओगे आती हुई खुशी को,
और अपने जीवन के एक नए आयाम को,
कोशिश ना छोड़ना आसमान छूने की,
कोशिश ना छोड़ना आसमान छूने की...
शीर्षक: साथ ना था फिर भी में चलता गया
जो एक पल मिला फुर्सत का,
देखा मुड़कर मेनें कदमों को,
हुआ एहसास ये सफ़र तो लम्बा हुआ,
साथ ना था फिर भी में चलता गया,
कभी धूप कभी सहर,
कभी शांत कभी तूफान,
कितना कुछ देखता चला गया,
साथ ना था फिर भी में चलता गया,
कुछ इस कदर तंग थे,
मेरे वक्त और हलात की,
कितना कुछ खुद को समझाता गया,
साथ ना था फिर भी में चलता गया,
कुछ तो बात होगी मुझमें भी,
जो चुना उस खुदा ने मुझे,
नहीं तो यू तो उसे कोई कमी ना होगी,
साथ ना था फिर भी में चलता गया...
शीर्षक: कौनसा फैसला मेरा है
कौनसा फैसला मेरा है,
कहना मुश्किल समझना मुश्किल,
यू तो ऐसे ही जीये जा रहे थे,
मानो सब दर्द पीये जा रहे थे,
हर रोज़ शाम आती थी और,
जाने कितने फसाने कह जाती थी,
और हम खुद से रोज पूछते थे,
कौनसा फैसला मेरा है,
जिंदगी सबकी एक सी है,
अकसर कुछ ज्यादा मीठी,
कभी कुछ नमकीन सी है,
कौनसा फैसला मेरा है,
जीने की वजह ढूंढो तो,
एक नहीं दोस्त हज़ार है,
बस ये खुद को समझाना होगा,
कौनसा फैसला मेरा है...
शीर्षक: जो पाया वही लौटा रही हूं दुनिया
जो पाया वही लौटा रही हूं दुनिया,
चंद शब्दों से समझा रही हूं,
जो पाए ज़ख्म और ख़ुशियां मैने,
उन्हीं में मुस्कुरा रही हूं मैं,
नहीं फकॅ पड़ता किसी के आने जाने से,
तेरे ही दिखाये रंगो को दिखा रही हूँ,
कभी पढ़कर तो देख मेरी आंखो को,
जो पाया वही लौटा रही हूं दुनिया,
बेखौफ होती जा रही है दुआयें मेरी,
क्यूं अपनी ही हस्ती से बेज़ार हूं मैं,
गिरके उठने की इस भाग दौड़ में,
जो पाया वही लौटा रही हूं दुनिया,
सच झूठ से परे भी एक जहान है,
जहां इंसान को इंसान समझना भी,
आज के दौर में एक बड़ा गुनाह है,
जो पाया वही लौटा रही हूं दुनिया...
शीर्षक: सीता तो खोजते हो तुम
सीता तो खोजते हो तुम,
क्या तुम उसके लिए एक सुरक्षित,
अशोक वाटिका बना पाओगे,
जहां ना होगा भय ना अपमान,
जिसके हर कोने में वो,
खुलकर सांस ले पायेगी,
उसकी सब शंकाए मिट जाएगी,
सीता तो खोजते हो तुम,
जहां उसकी आत्मरक्षा को,
वो किसी राम के आने की,
बाँट ना निहारती होगी,
सीता तो खोजते हो तुम,
जहां वो कमज़ोर ना मानकर,
सामाजिक भेड़ियों की,
भेंट चढ़ने से बच पायेगी,
सीता तो खोजते हो तुम...
शीर्षक: अक्सर मुझे महसूस हुआ है
अक्सर मुझे महसूस हुआ है,
तेरी इस हंसी के पीछे,
कहीं छुपा दर्द गहरा है,
कोई तो कोना अधूरा है,
एक ऐसा मोड़ ऐसा छोर,
जहां होकर अक्सर इंसान,
खुद से ही जंग लड़ता है,
अक्सर मुझे महसूस हुआ है,
जैसे तेरी होती है मुलाकात,
रोज़ ही असल ज़िंदगी से,
एक नए सच नए झूठ से,
अक्सर मुझे महसूस हुआ है,
तेरे इस सफर ने ही तुझे,
शायद ऐसा बनाया हैं,
और तू खुद को पहचान पाया है,
अक्सर मुझे महसूस हुआ है...
शीर्षक: जो बीत गई सो बात गई
जो बीत गई सो बात गई,
पर आने वाला कल तो तेरा है,
माना की जीवन अभी अधूरा है,
पर आता हुआ सवेरा तो सुनहरा है,
जीना इसी को कहते हैं,
जहां कभी सुख का प्रकाश,
कभी दुखद अँधेरा है,
जो बीत गई सो बात गई,
जीवन की गिनती सालो में नहीं,
कुछ खास जीयें लम्हो में है,
तो फिर तू क्यों उदास हो,
जो बीत गई सो बात गई,
अतित से कुछ हासिल नहीं तुझे,
फिर किस बात का रोना है,
हिम्मत रख और आगे बढ़,
जो बीत गई सो बात गई...
शीर्षक: आए हो तुम तो हो रहा धीरे से सवेरा
आए हो तुम तो हो रहा धीरे से सवेरा,
और दूर होता जा रहा तमस अँधेरा,
जीवन के कई प्रहर बीते इसमें ही,
अब आती खुशी की लहर अनोखी हैं,
एक पल के सुकून की तलाश का सफर,
निराशा से उम्मीद तक का ये लंबा सफर,
देखो अब कहीं जाकर ठहर पाया है,
आए हो तुम तो हो रहा धीरे से सवेरा,
जिस पल जिस मोड़ पर तलाश ख़तम हो,
वही से एक सुनहरी शुरुआत होती है,
नयी दिशा नयी सुबह एक नयी उड़ान होती है,
आए हो तुम तो हो रहा धीरे से सवेरा,
आए हो तुम तो हो रहा धीरे से सवेरा,
आए हो तुम तो हो रहा धीरे से सवेरा...
शीर्षक: सपनों की धरा पर बीज सा रोप दे खुदको
सपनों की धरा पर बीज सा रोप दे खुदको,
सोच कुछ मत बस कदम बढ़ाता चल तू,
जो खुद पर भरोसा हो और अपने सपने पर,
तो क्या है नामुमकिन सब तेरी मुट्ठी में,
बस याद ये रख सपनो को हमेशा ही,
सच होने को चाहिए एक मजबूत बुनियाद,
और तेरा निरंतर होने वाला प्रयास,
सपनों की धरा पर बीज सा रोप दे खुदको,
किसने कहा तुझे की तू अकेला है सफर में,
तेरी हिम्मत तेरी मेहनत और तेरा सपना साथ है,
बस खुद पर भरोसा रख और अपने सपने पर,
सपनों की धरा पर बीज सा रोप दे खुदको,
ऊंची उड़ान ऊंचे सपनों के साथ तू,
क्या पता अपने आप को ढूँढ ही ले एक दिन,
और अपनी मन आत्मा के सुकून से फिर मिले,
सपनों की धरा पर बीज सा रोप दे खुदको...
शीर्षक: मंजिल है तो रास्ता भी होगा
मंजिल है तो रास्ता भी होगा,
कहीं से कहीं का सफर होगा,
उम्मीद जो साथ हैं तेरे,
कभी फिर तेरा भी दौर होगा,
रुकना मना थकना मना,
हिम्मत हारकर रोना माना,
कदमों के भरोसे ही चलना होगा,
मंजिल है तो रास्ता भी होगा,
खुद पर भरोसा रख,
और उस खुदा पर,
एक ना एक दिन तेरा सवेरा होगा,
मंजिल है तो रास्ता भी होगा,
जो तू खुद अपना मांझी है,
दिशा भी तेरी है,
और होंसला भी तेरा है,
मंजिल है तो रास्ता भी होगा...
शीर्षक: जब बोल की जगह चुप्पी हो
जब बोल की जगह चुप्पी हो,
तो अक्सर रिश्ते खामोश मौत मरते हैं,
एक दूसरे को दोष देने से,
सिर्फ अहम खुश हुआ करते हैं,
कोई भी हार जीत सिर्फ एकतरफा नहीं होती,
कुछ मेरा कुछ उसका जरूर जाता है,
जिसकी अग्नि में रिश्ता खो जाता है,
जब बोल की जगह चुप्पी हो,
हर मोड़ हर कदम पर साथ होने से,
दिल से दिल तक की दूरी तय नहीं होती,
कई बार कुछ शब्दों की भी जरूरत होती है,
जब बोल की जगह चुप्पी हो,
रिश्ते में अहम के होने से,
दोनों ओर की हार होती है,
कुछ मेरा कुछ उसका बिखर जाता है,
जब बोल की जगह चुप्पी हो...
शीर्षक: बात अलग होती है
जो वो होता है साथ तो,
बात अलग होती है,
हर मुलाकात की,
मुस्कान अलग होती है,
जीवन भर जिसकी आस में भटके,
वो ऐसे मोड पर मिला,
जहां किसी एक को चुनना,
सबसे बड़ा सवाल था,
जब सवाल स्नेह और जिम्मेदारी का हो,
तो अक्सर हार जीत मुश्किल होती है,
कुछ सवाल कुछ बाते,
बस के बाहर भी होते हैं,
वो होता है साथ तो,
बात अलग होती है,
वो होता है साथ तो,
बात अलग होती है..